सारंडा वन्य जीव अभयारण्य मामला: सुप्रीम कोर्ट से झारखंड सरकार को बड़ी राहत, सारंडा वन के 31,468 हेक्टेयर क्षेत्र को सेंचुरी घोषित करने की अनुमति
रांची। झारखंड सरकार को सुप्रीम कोर्ट से सारंडा वन (Saranda Forest) मामले में बड़ी राहत मिली है। सारंडा को वन अभयारण्य (Saranda Wildlife Sanctuary) घोषित करने के मामले को लेकर बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई। इस दौरान मुख्य सचिव अविनाश कुमार मौजूद थे। देश की सर्वोच्च अदालत ने राज्य सरकार को सारंडा वन क्षेत्र के 31,468.25 हेक्टेयर हिस्से को वन्यजीव अभयारण्य (Wildlife Sanctuary) घोषित करने की अनुमति दे दी है। यह फैसला पर्यावरण संरक्षण और औद्योगिक हितों के बीच संतुलन साधने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम माना जा रहा है।
मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति के. विनोद चंद्रन की पीठ ने अपने आदेश में स्पष्ट किया कि SAIL और अन्य वैध माइनिंग लीज वाले क्षेत्र को अभयारण्य के प्रभाव क्षेत्र से बाहर रखा जाएगा। साथ ही राज्य सरकार को एक सप्ताह के भीतर इस संबंध में शपथ पत्र दाखिल करने का निर्देश दिया गया है।

🔎 Saranda Wildlife Sanctuary: सारंडा वन्य जीव अभयारण्य मामला: मामला क्या है?
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (NGT) ने 12 जुलाई 2022 को झारखंड सरकार को सारंडा (Saranda Forest) के 400 वर्ग किमी क्षेत्र को वन्यजीव अभयारण्य घोषित करने का निर्देश दिया था। लेकिन राज्य सरकार द्वारा समय पर इस आदेश को लागू नहीं किए जाने के कारण मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया। अदालत के निर्देश के बाद सरकार ने अप्रैल 2025 में हलफनामा दायर किया, जिसमें उसने 31,468.25 हेक्टेयर क्षेत्र को अभयारण्य बनाने का प्रस्ताव रखा।
सुप्रीम कोर्ट में राज्य सरकार की ओर से शपथ पत्र दायर किया गया था। इस शपथ पत्र में बताया गया कि झारखंड का सारंडा वन अपनी जैव-विविधता और प्राकृतिक संपादा के लिए प्रसिद्ध है, उसको पूरी तरह से वन अभयारण्य घोषित करने को लेकर सरकार चिंतित है। यह निर्णय झारखंड के लिए नुकसानदेह हो सकता है। सरकार वन एवं वन्य जीवों के संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। वन अभयारण्य घोषित किये बिना भी इसका संरक्षण किया जा सकता है।
शपथ पत्र में इन सभी बिंदुओं का जिक्र किया गया जिसको कोर्ट संज्ञान में लेते हुए 31468.25 हेक्टेयर को सेंक्चुअरी घोषित करने की अनुमति दे दी है। इसके साथ ही कोर्ट ने SAIL और वैद्य माइनिंग लीज को सेंक्चुअरी के प्रभाव क्षेत्र से मुक्त रखने का भी आदेश दिया। इसके साथ ही कोर्ट ने राज्य सरकार को एक सप्ताह के अंदर शपथपत्र दायर करने का आदेश भी दिया। मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और न्यायाधीश के विनोद चंद्रन की खंडपीठ ने ये आदेश दिया।
हालांकि, इस प्रस्ताव को लेकर सरकार के अंदर भी मतभेद सामने आए। वन विभाग की ओर से दायर प्रारंभिक हलफनामा पूर्व पीसीसीएफ (वाइल्ड लाइफ) द्वारा तैयार किया गया था, जिसमें 500 वर्ग किमी क्षेत्र को अभयारण्य घोषित करने की बात कही गई थी। इससे खान विभाग और उद्योग विभाग ने आपत्ति जताई, क्योंकि इससे लौह अयस्क परियोजनाओं पर असर पड़ने की आशंका जताई गई।
⚖️ Saranda Wildlife Sanctuary: सारंडा वन्य जीव अभयारण्य :सरकार के सामने चुनौतियां
सारंडा वन (Saranda Jungle) क्षेत्र खनिज संपदा से भरपूर है। खान विभाग के अनुसार, यहां लगभग 4700 मिलियन टन लौह अयस्क का भंडार है, जिसकी अनुमानित कीमत 25 से 30 लाख करोड़ रुपये है। राज्य को इससे 14 लाख करोड़ रुपये तक की रॉयल्टी प्राप्त हो सकती है।
विभाग का कहना है कि यदि क्षेत्र को अभयारण्य घोषित किया गया तो खनन गतिविधियों पर रोक लग जाएगी, जिससे उत्पादन में भारी गिरावट होगी और हर साल 5000 से 8000 करोड़ रुपये तक का नुकसान होगा।
उद्योग विभाग ने भी चेताया है कि इससे वर्ष 2030-31 तक 300 मिलियन टन कच्चे इस्पात उत्पादन के लक्ष्य को हासिल करना मुश्किल हो जाएगा। इसके अलावा, 4.20 लाख लोगों की आजीविका, 2000 MSME इकाइयों का संचालन और 4400 करोड़ रुपये का निर्यात भी प्रभावित होगा।
📜Saranda Wildlife Sanctuary: सारंडा जंगल: सरकार की पहल और ग्रामीणों का विरोध
मामले के संवेदनशील होने के कारण सरकार ने वित्त मंत्री राधाकृष्ण किशोर की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्रियों की समिति गठित की है। यह टीम सारंडा क्षेत्र का दौरा कर स्थिति का आकलन कर रही है। हालांकि, क्षेत्र के ग्रामीणों ने अभयारण्य के प्रस्ताव का विरोध किया है। उनका कहना है कि यह उनकी संस्कृति और जीवनशैली पर हमला है।
🌿 Saranda Wildlife Sanctuary: सारंडा जंगल: भविष्य की राह
सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद अब सरकार के पास वन्यजीव संरक्षण और औद्योगिक विकास दोनों के बीच संतुलन साधने की चुनौती है। जहां एक ओर सारंडा एशिया के सबसे समृद्ध लौह अयस्क भंडारों में से एक है, वहीं यह क्षेत्र पर्यावरणीय दृष्टि से भी अत्यंत संवेदनशील है।
आगामी दिनों में सरकार को ऐसा समाधान तलाशना होगा जिससे न तो खनन उद्योग को नुकसान पहुंचे और न ही सारंडा की जैव विविधता पर संकट आए। सुप्रीम कोर्ट का फैसला इस दिशा में एक अहम कदम है, लेकिन असली परीक्षा अब सरकार की नीतियों और फैसलों की होगी।
सुप्रीम कोर्ट के इस आदेश से झारखंड सरकार को फिलहाल राहत जरूर मिली है, लेकिन सारंडा (Saranda Jungle)को बचाने और राज्य की आर्थिक जरूरतों के बीच संतुलन बनाना अब उसकी सबसे बड़ी जिम्मेदारी होगी।
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