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Kumbh Mela: कुंभ मेला कब, कहां और कितने वर्षों में लगता है? जानें इसका संपूर्ण रहस्य ?

Maha Kumbh: क्या है महाकुंभ का इतिहास ? कब और कैसे शुरू हुआ Kumbh मेला ?

Kumbh mela: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में 13 जनवरी से सबसे बड़े धार्मिक संगम महाकुंभ  (maha kumbh) का आयोजन किया जा रहा है, जो 26 फरवरी तक चलेगा। कुंभ भारत का एक सबसे प्राचीन और विशाल धार्मिक आयोजन है, जो हिंदू धर्म की परंपराओं, आध्यात्मिक और संस्कृति का प्रतीक है। इसे दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक मेला भी कहा जाता है।

Kumbh mela: वैसे देखा जाए तो कुंभ (kumbh) मेले का इतिहास काफी पुराना है। भारत में यह मेला बहुत अनूठा है जिसमें पूरी दुनिया से लोग आते हैं और पवित्र नदी में स्नान करते हैं। इसका अपना ही धार्मिक महत्व है और यह संस्कृति का भी एक महत्वपूर्ण प्रतीक माना जाता है। यह मेला लगभग 48 दिनों तक चलता है। मुख्य रूप से दुनिया भर से साधू, संत, तपस्वी, तीर्थयात्री, इत्यादि भक्त इसमें भाग लेते हैं। परन्तु क्या आप कुंभ का अर्थ जानते हैं, इसे क्यों मनाया जाता है, इसके पीछे का इतिहास क्या है, किसने कुंभ मेले की शुरुआत की इत्यादि आइये।

Kumbh Mela: जानें क्या है कुंभ का महत्व ? कुंभ और महाकुंभ में क्या अंतर है?

महाकुंभ मेले (maha kumbh) में भारत समेत दुनियाभर से करोड़ों लोग शामिल होने पहुंच रहें हैं। घाटों पर भारी भीड़ है और श्रद्धालुओं में खूब उत्साह देखा जा रहा है। दरअसल, ज्योतिषीय गणनाओं और ग्रह-नक्षत्रों की स्थिति के आधार पर कुंभ और महाकुंभ (maha kumbh) का आयोजन अनंत काल से होता आ रहा है। विष्णु पुराण में इस बात का उल्लेख है कि जब गुरु कुंभ राशि में प्रवेश करता है और सूर्य मेष राशि में होता है, तो हरिद्वार में कुंभ (kumbh) का आयोजन होता है। इसी प्रकार, जब सूर्य और बृहस्पति सिंह राशि में होते हैं, तो नासिक में कुंभ लगता है। उज्जैन में कुंभ तब लगता है जब बृहस्पति कुंभ राशि में प्रवेश करता है। प्रयागराज में माघ अमावस्या के दिन सूर्य और चंद्रमा मकर राशि में होते हैं और बृहस्पति मेष राशि में होता है।

Kumbh Mela: अर्ध कुंभ कब और कहां लगता है ?

अर्ध कुंभ  हर 6 साल में हरिद्वार और प्रयागराज में होता है। यह आयोजन गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर होता है, जिसे धार्मिक दृष्टि से अत्यधिक पवित्र माना जाता है। अर्ध कुंभ का महत्व इसलिए अधिक है क्योंकि इसे कुंभ मेले  का आधा चक्र माना जाता है। इसमें लाखों श्रद्धालु स्नान करने के लिए आते हैं, क्योंकि यह मान्यता है कि इस दौरान संगम में स्नान करने से पापों का नाश होता है और मोक्ष की प्राप्ति होती है। इसके आयोजन का समय भी खगोलीय गणनाओं पर आधारित होता है। जब बृहस्पति वृश्चिक राशि में और सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है, तब अर्ध कुंभ का आयोजन होता है।

Kumbh Mela: कुंभ कब और कहां लगता है ?

तो कुंभ मेला (kumbh mela) हर 4 साल में एक बार लगता है और चार पवित्र स्थानों के बीच बारी-बारी से लगता है। कुंभ मेला (kumbh mela) हर 12 साल के अंतराल पर एक पवित्र स्थल पर आयोजित होता है। ये चार स्थान प्रयागराज, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक हैं। ये मेला प्रयागराज में गंगा, यमुना और सरस्वती नदियों के संगम पर, हरिद्वार में गंगा नदी के किनारे, उज्जैन में शिप्रा नदी के किनारे और नासिक में गोदावरी नदी के किनारे आयोजित किया जाता है।

Kumbh Mela: पूर्ण कुंभ कब और कहां लगता है ?

पूर्ण कुंभ मेला कुंभ (kumbh)मेले का ही विस्तार है, जो हर 12 साल में प्रयागराज में आयोजित होता है। इसे कुंभ का पूर्ण रूप माना जाता है और इसका महत्व अन्य कुंभ मेलों से अधिक है। पवित्र नदियों गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम पर होने वाले इस आयोजन का मुख्य उद्देश्य आत्मा की शुद्धि और मोक्ष प्राप्ति है।

Kumbh Mela: महाकुंभ कब और कहां लगता है ?

महाकुंभ (maha kumbh) एक दुर्लभ आयोजन है, जो 12 पूर्ण कुंभ (kumbh) के बाद यानी 144 साल बाद आता है और केवल प्रयागराज में ही लगता है। आसान भाषा में समझें तो प्रयागराज में हर 12 साल में पूर्ण कुंभ मेला लगता है। जब 11 पूर्ण कुंभ हो जाते हैं तब 12वें पूर्ण कुंभ को महाकुंभ (maha kumbh) कहा जाता है, जो 144 साल में एक बार लगता है। इसके चलते इसे भव्य कुंभ (kumbh) भी कहा जाता है। यानी साल 2025 में लगने वाला महाकुंभ (maha kumbh) 144 सालों बाद आया है, यही वजह है कि इसे बेहद खास माना जा रहा है।

Kumbh Mela: कुंभ मेले के पीछे की कहानी क्या है ? 

कुंभ मेला (kumbh mela) दो शब्दों कुंभ और मेला से बना है। कुंभ (kumbh) नाम अमृत के अमर पात्र या कलश से लिया गया है जिसे देवता और राक्षसों ने प्राचीन वैदिक शास्त्रों में वर्णित पुराणों के रूप में वर्णित किया था। मेला, जैसा कि हम सभी परिचित हैं, एक संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ है ‘सभा’ या ‘मिलना’।

इतिहास में कुंभ मेले की शुरुआत कब हुई, किसने की, इसकी किसी ग्रंथ में कोई प्रमाणिक जानकारी नहीं है परन्तु इसके बारे में जो प्राचीनतम वर्णन मिलता है वह सम्राट हर्षवर्धन के समय का है, जिसका चीन के प्रसिद्ध तीर्थयात्री ह्वेनसांग  द्वारा किया गया है। पुराणों के अनुसार ऐसा माना जाता है कि शंकराचार्य ने इसकी शुरुआत की थी और कुछ कथाओं के अनुसार कुंभ की शुरुआत समुद्र मंथन से ही हो गई थी।

Kumbh Mela: कुंभ मेले का इतिहास (History of Kumbh)

दरअसल, कुंभ मेले (kumbh mela) का महत्व पौराणिक कथाओं और धार्मिक परंपराओं से जुड़ा है। कुंभ मेले की उत्पत्ति सनातन धर्म की पौराणिक कथाओं, विशेष रूप से समुद्र मंथन की कथा से है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार, दुर्वासा ऋषि के श्राप के कारण जब इंद्र और देवता कमजोर पड़ गए, तो असुरों ने देवलोक पर आक्रमण करके उन्हें परास्त कर दिया था। असुरों से पराजित होने के बाद सभी देवता भगवान ब्रह्मा जी के पास जाते हैं और उन्हें पूरा किस्सा सुनाते हैं। ब्रह्मा जी सारे देवताओं को लेकर विष्णु जी के पास जाते हैं और मदद मांगते हैं। तब विष्णु जी उन्हें एक सुझाव देते हैं कि हमें समुद्र मंथन करना चाहिए और समुद्र मंथन से अमृत निकलेगा। इस अमृत को पीकर आप अमर हो जाओगे और मृत्यु आपको हरा नहीं पाएगी। लेकिन समुद्र मंथन का काम देवता अकेले नहीं कर सकते थे इसलिए भगवान विष्णु ने देवताओं को दैत्यों के साथ मिलकर मंथन करके अमृत निकालने को कहा। असुर भी इस मंथन के लिए मान गए क्योंकि उन्हें यह लगा था कि जैसे ही अमृत  निकलेगा तो वो अमृत उन असुरों को भी दिया जाएगा।

Kumbh Mela: कुंभ की पौराणिक कथा (Maha kumbh katha)

समुद्र मंथन से विष निकलने के बाद जैसे ही भगवान धन्वंतरि अमृत कुंभ (kumbh) यानी कि अमृत से भरा हुआ कलश बाहर निकला देवता और असुरों के बीच में लड़ाई छिड़ गई। इस दौरान अमृत कलश को लेने के लिए राक्षस दौड़े। लड़ाई के बीच में विष्णु भगवान ने अपना वाहन गरुड़ देव यह अमृत का कलश लेके वहां से उड़ जाने को कहा और जब गरुड़ देव यह कलश लेकर जा रहे थे तब अमृत की चार बूंदे चार जगह पर गिरती है हरिद्वार, उज्जैन, नासिक और प्रयागराज में गिरी जहां पर 12 वर्ष बाद कुंभ मेलों का आयोजन होता है। इसीलिए इन्हीं चार जगहों पर कुंभ मेले (kumbh mela) का आयोजन होता है। इसके साथ ही ये भी मान्यता है कि देवलोक के 12 दिन, पृथ्वी के 12 साल के बराबर होते हैं। इसलिए हर 12 वर्ष में एक बार इन चारों स्थानों पर कुंभ का आयोजन होता है।

Kumbh Mela: अलग-अलग हैं मान्यताएं (Kumbh Mela history)

पहली बार कुंभ (kumbh) का आयोजन कब हुआ, इसे लेकर कोई सटीक प्रमाण नहीं मिलता। प्रथम कुंभ आयोजन की तारीख को लेकर अलग-अलग मत हैं। कुछ मान्यताओं के अनुसार, 7वीं शताब्दी में सम्राट हर्षवर्धन के काल में चीनी तीर्थयात्री ह्वेनसांग ने अपने एक यात्रा विवरण में कुंभ का वर्णन किया है।

इस यात्रा विवरण में उन्होंने प्रयागराज के कुंभ (kumbh mela) महोत्सव के दौरान संगम पर स्नान का उल्लेख करते हुए इसे पवित्र हिंदू तीर्थस्थल बताया है। वहीं कुछ लोगों का यह भी मानना है कि 8वीं शताब्दी में भारतीय गुरु तथा दार्शनिक आदि शंकराचार्य जी और उनके शिष्य सुरेश्वराचार्य ने दसनामी संन्यासी अखाड़ों के लिए संगम तट पर स्नान की व्यवस्था की थी। 

कुंभ मेला  केवल एक धार्मिक आयोजन नहीं है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपरा और आध्यात्म का प्रतीक है। हर 12 साल में चार स्थानों पर आयोजित होने वाला यह मेला न केवल श्रद्धालुओं के लिए बल्कि पूरे विश्व के लिए एक महत्वपूर्ण आकर्षण बन चुका है।

 

 

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